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Success Story: हालत देख लोग समझते थे भिखारी, आज सैकड़ों लोगों को दे रहा नौकरी, पढ़ें सक्सेस स्टोरी
 

वह हर चुनौती से लड़ते गए और अंत में अपने लिए सफलता का रास्‍ता बना लिया। कुरणेश बचपन से ही चल-फिर नहीं सकते हैं। एक समय था जब लोग उन पर सहानुभूति जताते थे। ट्राइसाइकिल पर देख लोग उन्‍हें भिखारी समझ लेते थे।

 

Meri Kahani, New Delhi जिंदगी में मुश्किलें आती ही हैं। कुछ इनसे डरकर हार मान लेते हैं। तो कई इनका बहादुरी से सामना करते हैं। कुरणेश कुमार (Kurnesh Kumar Success Story) की जिंदगी भी चुनौतियों का पहाड़ रही है।

लेकिन, उन्‍होंने कभी हार नहीं मानी। वह हर चुनौती से लड़ते गए और अंत में अपने लिए सफलता का रास्‍ता बना लिया। कुरणेश बचपन से ही चल-फिर नहीं सकते हैं। एक समय था जब लोग उन पर सहानुभूति जताते थे। ट्राइसाइकिल पर देख लोग उन्‍हें भिखारी समझ लेते थे।

उन्‍हें कंबल और चिल्‍लर तक देने के लिए आ जाते थे। कुरणेश को समझाना पड़ता था कि वह किसी की दया के मोहताज नहीं हैं। मुश्किल समय में उन्‍होंने पढ़ाई का दामन थामे रखा। फिर एक दिन अपना कोचिंग सेंटर शुरू कर दिया।

वह बच्‍चों में बेहद हिट हो गए। उन्‍हें 'हनी सर' के नाम से जाना जाने लगा। नौबत यह आ गई कि कुछ समय बाद उन्‍हें टीचर्स रखने पड़े। वह खुद इन टीचरों को लाखों की सैलरी देने लगे।

कुरणेश कुमार पंजाब के लुधियाना में रहते हैं। जब वह सिर्फ 5 साल के थे तो उन्हें पोलियो और पैरालिसिस अटैक दोनों साथ आ गए थे। डॉक्टरों ने चार महीने के इलाज के बाद जब अस्‍पताल से छुट्टी की तो दिल को बड़ा सदमा देने वाली बात कही।

उन्‍होंने कहा कि कुरणेश के वेस्‍ट के नीचे का हिस्‍सा हमेशा के लिए डेड रहेगा। यानी इसमें किसी तरह की कोई हरकत नहीं होगी। पोलियो और पैरालिसिस अटैक दोनों साथ में आने से उनके शरीर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया था।

पर‍िवार की उस समय फाइनेंशियल कंडीशन बहुत खराब थी। उनके एक छोटा भाई और बड़ी बहन थी। परिवार को उनका इलाज करा पाना भी बहुत मुश्किल पड़ रहा था। डॉक्‍टरों ने उन्‍हें कुछ एक्‍सरसाइज बताईं और दवाएं देकर डिस्‍चार्ज कर दिया।

छठी में पहुंचते ही शुरू हुईंं द‍िक्‍कतें

माता-पिता को रिश्‍तेदारों ने सलाह दी कि कुछ भी हो इस बच्‍चे को पढ़ाना जरूरी है। 5वीं क्‍लास तक सब ठीक रहा। उनकी मां गोद में लेकर उन्‍हें स्‍कूल छोड़ आती थीं। लेकिन, छठी क्‍लास से चुनौतियां बढ़ गईं।

न्‍हें हर स्कूल ने एडमीशन देने से मना कर दिया। स्‍कूल वाले कहते कि बच्‍चा पूरी तरह निर्भर है। इसके लिए केयरटेकर की जरूरत होगी। उनके पास ऐसी सुविधा नहीं है। आखिरकार कुरणेश को पास के सरकारी स्कूल में दाखिला मिल गया।

इसके लिए भी आस-पड़ोस के लोगों को स्‍कूल जाकर बहुत मान-मनौव्‍वल करना पड़ा था। स्कूल से ज्‍यादा वह घर में पढ़ते थे। क्‍लास में बोर्ड देखने में उन्‍हें तकलीफ होती थी। जैसे-तैसे उन्‍होंने 10वीं क्‍लास पूरी की। वह 10वीं से ही ट्यूशन पढ़ाने लगे थे। फिर 12वीं भी कर लिया।

ट्राइसाइकिल पर देख भिखारी समझ लेते थे लोग

12वीं के बाद ग्रेजुएशन में दोबारा कुरणेश के सामने पुरानी चुनौती आई। उन्‍हें फिर एडमिशन मिलने में दिक्‍कत आने लगी। सौभाग्‍य से एक गवर्नमेंट कॉलेज में उनका दाखिला हो गया। लेकिन, यह घर से 4-5 किमी दूर था।

वह अकेले ट्राइसाइकिल चलाकर वहां पहुंचते थे। यह काफी मुश्किल होता था। कई लोग उन्‍हें ट्राइसाइकिल पर देख भिखारी समझ लेते थे। कभी कोई गाड़ी वाला आता तो उन्‍हें कंबल और चिल्‍लर देने की कोशिश करता। कुरणेश को बताना पड़ता कि इसकी जरूरत उन्‍हें नहीं है। इस बात से कुछ लोग चिढ़ तक जाते थे।

 जी-तोड़ मेहनत की और हो गए ह‍िट

एक दिन अपनी ट्राइसाइकिल से घर लौटते समय मूसलाधार बारिश और कीचड़ के कारण वह गिर पड़े। जगह सूनसान थी। मदद के लिए भी कोई नहीं आया। उस दिन उन्होंने खुद से कसम खाई कि कुछ भी हो जिंदगी में कभी हार नहीं माननी है।

पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्‍होंने बैच में बच्‍चों को पढ़ाना शुरू किया। वह सुबह छह बजे से रात में 10 बजे तक पढ़ाते। बच्‍चों के बीच वह 'हनी सर' के नाम से मशहूर हो गए। लोग यह तक कहते थे कि अगर कोई पढ़ नहीं रहा है तो 'हनी सर' के पास भेज दो वह उसे टॉपर बना देंगे।

फिर उन्‍होंने कोचिंग को प्रोफेशनल स्केल पर ले जाने का फैसला किया। सफलता की दिशा में एक कदम और बढ़ाते हुए उन्‍होंने ब्रेनबॉक्‍स नाम की कोचिंग स्‍टार्ट की। यह वेंचर बेहद सफल साबित हुआ। शुरू में वह खुद पढ़ाते थे।

लेकिन, बाद में उन्‍हें पढ़ाने के लिए टीचरों को रखने की जरूरत पड़ने लगी। उनके अंडर में 6 से 7 टीचर काम करने लगे। वह इन्‍हें लाखों की सैलरी देने लगे। इस तरह एजुकेशन सेक्‍टर में ही उन्‍होंने अपना करियर बना लिया। कुरणेश को स्टूडेंट बहुत पसंद करते हैं।